श्री कृष्ण कवच एक अत्यंत शक्तिशाली वैदिक स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है।
श्री कृष्ण कवच एक अत्यंत शक्तिशाली वैदिक स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है। इसे पढ़ने से शरीर, मन और आत्मा की रक्षा होती है। जैसे सैनिक युद्ध में कवच पहनते हैं, वैसे ही यह मंत्र जीवन के हर मोर्चे पर हमें संकटों से सुरक्षा प्रदान करता है। श्री कृष्ण कवच हिंदी में पढ़ा जाए तो इसका प्रभाव और भी गहरा होता है क्योंकि जब हम अपनी भाषा में ईश्वर को पुकारते हैं, तो भावनाएं और आस्था दोनों अधिक गहराई से जुड़ती हैं।
यह कवच विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभदायक है जो मानसिक तनाव, नकारात्मक ऊर्जा, भय, शत्रु बाधा, या जीवन की अनिश्चितताओं से घिरे होते हैं। इसे पढ़ते समय केवल उच्चारण ही नहीं, भाव और श्रद्धा का होना भी जरूरी है। Shri Krishna Kavach in Hindi को नियमित रूप से पढ़ने से घर का वातावरण शांत और पवित्र बना रहता है और सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होता है।
श्री कृष्ण कवच का इतिहास
श्री कृष्ण कवच की उत्पत्ति वैदिक काल में हुई मानी जाती है और इसका उल्लेख गरुड़ पुराण में मिलता है। ऋषि नारद जी ने इसे भगवान शिव से सुना और फिर इसे मानव कल्याण हेतु प्रकट किया। पुराणों में बताया गया है कि इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति को भगवान श्रीकृष्ण की सीधी कृपा प्राप्त होती है।
इस कवच में न केवल नाम-जप की शक्ति है, बल्कि यह मन्त्रों का ऐसा मेल है जो सकारात्मक कंपन (vibrations) उत्पन्न करता है। इस कवच का प्रभाव इतना शक्तिशाली माना गया है कि जो भी इसे सच्चे मन और श्रद्धा से पढ़ता है, उसे जीवन में आत्मबल, सफलता और दिव्यता प्राप्त होती है।
ब्रह्माण्डपावन श्रीकृष्ण कवच
॥ ब्रह्मोवाच ॥
राधाकान्त महामाग ! कवचं यत्र प्रकाशितम् ।
ब्रह्माण्ड-पावनं नाम, कृपया कथय प्रभो ॥ 1॥
मां महेशं च धर्मं च, सन्तं च भक्त-वल्लभम् ।
त्वत्-प्रसादेन भुंजेयो, दायार्हं भक्त-संगतः ॥ 2॥
ब्रह्माजी बोले – हे महामाग ! राधा-वल्लभ ! प्रभो ! ‘ब्रह्माण्ड-पावन’ नामक जो कवच आपने प्रकाशित किया है, उसका उपदेश कृपा-पूर्वक मुझको, महादेव को और संत धर्म को कीजिए । हे भक्त-वल्लभ ! हम तीनों आपके भक्त हैं । आपकी कृपा से मैं अपने पुत्रों को भक्ति-पूर्वक इसका उपदेश दूँगा ॥ 1-2॥
॥ श्रीकृष्ण उवाच ॥
शृणु वक्ष्यामि ब्रह्मन् ! धर्मेण कवचं परम् ।
अहं दारार्तिभिः पूर्णम्, गोपीनां सुखदायकम् ॥ 1॥
सर्वं कस्मै न दातव्यं, भक्ताय शुचये मुदा ।
एक-तीर्थं मम देहेस्ति, राधा-रमण-संगतः ॥ 2॥
श्रीकृष्ण ने कहा –
हे ब्रह्मन् ! महेश ! धर्म ! तुम लोग सुनो ! मैं इस उत्तम ‘कवच’ का वर्णन कर रहा हूँ । यह परम दुर्लभ और गोपनीय है । इसे किसी को भी न देना, यह मेरे लिए प्राणों के समान है । जो तेज़ मेरे शरीर में है, वही इस कवच में भी है ।
कुरु सृष्टिंमिमं धृत्वा, धाता त्रि-जगतो भव ।
संस्थं भव हे शम्भो ! मम् तुल्यो भव हे मुने ॥ ३॥
हे धर्म ! त्वंमिमं धृत्वा, भव साक्षी च कर्मणाम् ।
तपस्याः फल-दाता त्वं, कुरु मम कर-दायकम् ॥ ४॥
हे ब्रह्मा !
तुम इस कवच को धारण कर के सृष्टि करो और तीनों लोकों के विज्ञान के पद पर प्रतिष्ठित रहो । हे शम्भो ! तुम भी इस कवच को ग्रहण कर, संसार का कर्म सम्पन्न करो और संसार में मेरे समान शक्तिशाली हो जाओ । हे धर्म ! तुम इस कवच को धारण कर के तपस्या करो और साक्षी बने रहो । तपस्या के लिए यह कवच तपस्वियों का फल-दाता हो जाओ ॥
ब्रह्माण्ड-पावनाकरणं, कवचस्येदम्: स्वयं ।
ऋषिर्महर्षि-प्रदश्चैव, देवोऽसौ जनार्दन ॥ ५॥
धर्मार्थ-काम-मोक्षाणां, विनियोगः प्रकीर्तितः ।
त्रि-लोक-त्रय-पावनात्, सिद्धिं कवचं लभेत् ॥ ६॥
इस ‘ब्रह्माण्ड-पावन’ कवच के ऋषि स्वयं हरि हैं, छन्द गायत्री है, देवता में जनार्दन श्रीकृष्ण हैं तथा इसका विनियोग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हेतु है । विधि : 3 लाख बार ‘पाठ’ करने पर यह ‘कवच’ सिद्ध हो जाता है ।
यो भवेत् सिद्ध-कवचो, मम तुल्यो भवेत्स सः ।
तेजसा सिद्धि-योगेन, ज्ञानिन विक्रमेण च ॥७॥
जो इस कवच को सिद्ध कर लेता है, वह तेज, सिद्धियों, योग, ज्ञान और बल-पराक्रम में मेरे समान हो जाता है ।
॥ मूल-कवच-पाठ ॥
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे।
विनियोगः
ॐ अस्य श्रीब्रह्माण्ड-पावन-कवचस्य श्रीहरिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीकृष्णो देवता, धर्म-अर्थ-काम-मोक्षेṣu विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यासः
श्रीहरिः ऋषये नमः: शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः: मुखे, श्रीकृष्णो देवतायै नमः: हृदि, धर्म-अर्थ-काम-मोक्षेṣu विनियोगाय नमः: सर्वाङ्गे ॥
॥ मूल कवचः ॥
प्रणवो मे शिरः पातु, नमो रामेश्वराय च ।
भालं पायान् नेत्र-युग्मं, नमो राधेश्वराय च ॥ १॥
कृष्णः पायाद् श्रीर-युग्मं, हे हरे प्राणनाथ च ।
जिघ्रिकां वह्निजायाश्च, कृष्णायैति सर्वदा ॥ २॥
श्रीकृष्णाय स्वाहेति च, कर्णौ पातु पद्द्वयः ।
ह्रीं कृष्णाय नमो वचः, वली पूर्वं मुनि-द्वयम् ॥ ३॥
नमो गोपीनरेशाय, स्कन्धाभ्यामवधारयेत् ।
दन्त-पङ्क्तिमष्ट-युग्मं, नमो गोपीश्वराय च ॥ ४॥
ॐ नमो भगवते रास-मण्डलाय स्वाहा ।
स्वयं वक्त्र-स्थली पातु, नमोऽस्तु पोषणाय च ॥ ५॥
ऐं कृष्णाय स्वाहेति च, कक्ष-युग्मं सदा पिबेत् ।
ॐ त्रयोदश स्वाहेति च, कङ्कणं सदा सेवितव्यम् ॥ ६॥
ऊं हरये नमः: इति, पृष्ठं पातु मदोद्भवः ॥
ॐ गोविन्दं-धारिणं, स्वाहा पातु सर्व-शरीरकं ॥ ७॥
श्री कृष्ण कवच के लाभ
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श्री कृष्ण कवच का नियमित रूप से पाठ करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं:
- भय और शत्रुओं से सुरक्षा: यह कवच जीवन के हर प्रकार के डर, अनजाने भय और शत्रुओं की बुरी दृष्टि से बचाता है।
- स्वास्थ्य में सुधार: मानसिक तनाव, बेचैनी, नींद की कमी, सिरदर्द जैसी समस्याओं में राहत मिलती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: इसका पाठ ध्यान और भक्ति में गहराई लाता है। साधकों को आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
- पारिवारिक सुख: घर में प्रेम, सहयोग और शांति बनी रहती है। परिवार में कलह कम होता है।
- वाणी और बुद्धि की वृद्धि: विद्यार्थी, वक्ता या कलाकारों के लिए यह कवच विशेष रूप से लाभदायक होता है।
श्री कृष्ण कवच पढ़ने की विधि
श्री कृष्ण कवच हिंदी में पढ़ने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
- पढ़ने से पहले स्नान कर लें और साफ वस्त्र पहनें
- भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं
- आसन पर बैठकर मन को शांत करें
- पाठ से पहले “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें
- फिर पूरे श्रद्धा से श्री कृष्ण कवच का पाठ करें
- अंत में भगवान से प्रार्थना करें: “हे प्रभु! मेरी रक्षा करो”
- यदि प्रतिदिन नहीं कर सकते, तो गुरुवार, एकादशी या किसी शुभ दिन इसका पाठ करें।
श्री कृष्ण कवच कैसे काम करता है?
यह कवच शरीर, मन और आत्मा पर एक ऊर्जात्मक सुरक्षा घेरा बनाता है। जैसे कोई मोबाइल में पासवर्ड लगाता है, वैसे ही यह कवच हमें जीवन की नकारात्मकता से सुरक्षित करता है। यह बुरे विचारों को दूर करता है और अच्छे विचारों को प्रेरित करता है।
यह हर अंग की रक्षा करता है, शरीर के ऊपरी भाग से लेकर पांव तक। इसका उच्चारण करने से एक कंपन उत्पन्न होती है जो पूरे वातावरण को पवित्र करती है।
शास्त्रों में श्री कृष्ण कवच का महत्व
महाभारत में अर्जुन को युद्ध में आत्मबल बढ़ाने के लिए श्रीकृष्ण ने यही उपदेश दिया था कि भगवान का नाम ही सबसे बड़ा कवच है। भागवत पुराण, गरुड़ पुराण, और अन्य ग्रंथों में भी Shri Krishna Kavach in Hindi को भक्तों के लिए अमोघ अस्त्र माना गया है।
बच्चों के लिए श्री कृष्ण कवच के लाभ (विस्तारित)
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जो बच्चे डरते हैं, रोते हैं या अशांत रहते हैं, उनके लिए यह कवच बहुत फायदेमंद है
- यह मन को शांत करता है और आत्मविश्वास बढ़ाता है
- उनके अध्ययन में भी यह ध्यान और मनोबल को बढ़ावा देता है
- माता-पिता इसे हर रात बच्चों को सुनाएं, जैसे लोरी की तरह
निष्कर्ष: श्री कृष्ण कवच से जीवन को सुरक्षित करें
श्री कृष्ण कवच न केवल एक मंत्र है बल्कि यह भगवान श्रीकृष्ण का सजीव आशीर्वाद है। जो भी इसे श्रद्धा से पढ़ता है, उसे हर क्षेत्र में सफलता, सुरक्षा और संतोष मिलता है। यह भय मिटाता है, हिम्मत देता है और ईश्वर के साथ एक दिव्य संबंध बनाता है।
FAQs
Q1: श्री कृष्ण कवच कब पढ़ना चाहिए?
उत्तर: सुबह स्नान के बाद शांत वातावरण में।
Q2: क्या श्री कृष्ण कवच से डर कम होता है?
उत्तर: हाँ, यह मन को शक्ति देता है और भय दूर करता है।
Q3: क्या यह कवच बच्चों के लिए सुरक्षित है?
उत्तर: बिल्कुल, यह बच्चों के लिए बहुत फायदेमंद है।
Q4: क्या इसे हर रोज़ पढ़ सकते हैं?
उत्तर: हाँ, इसे रोज़ पढ़ना बहुत शुभ होता है।
Q5: क्या श्री कृष्ण कवच हिंदी में मिल सकता है?
उत्तर: हाँ, यह लेख में आपको Shri Krishna Kavach in Hindi पूरा मिल रहा है।
Q6: क्या यह कालसर्प दोष में मदद करता है?
उत्तर: हाँ, यह हर प्रकार की नकारात्मकता से बचाता है।
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